क्या युद्ध में सब कुछ जायज़ है ?

Is everything justified in War

द्वितीय विश्व युद्ध के भयानक परिणामो को देखते हुए। दुनिया भर के अलग अलग देशों ने युद्ध के अंतराष्ट्रीय युद्ध नियम बनाये। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पकड़े गए। या हार गए सैनिकों से बहुत ज्यादा दुर्व्यवहार किया गया।
जाहिर है सभी सैनिक अपने अपने देश के लिए लड़ रहे थे। युद्ध की शुरुआत किसने की यह मायने तो रखता है। लेकिन सबसे ज्यादा यह मायने रखता है कि उस युद्ध में शामिल सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।

जिनेवा संधि क्या है ? (What is Geneva Convention)

जिनेवा संधि सन 1949 में अंतरराष्ट्रीय संधियों का एक सेट है। जिसमे चार संधियाँ और तीन अन्य प्रोटोकॉल शामिल है। इन संधियों का उद्देश्य किसी भी युद्ध में मानवीय मूल्यों को बनाये रखना और उससे संबंधित कानून बनाना है।
यह समझौता युद्ध में शामिल सैनिकों की मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए होती है। सन 1864 में पहली संधि हुई। उसके बाद सन 1906 में दूसरी संधि फिर सन 1929 में तीसरी संधि हुई। जब विश्व द्वितीय विश्वयुद्ध से जूझ रहा था और जब यह युद्ध समाप्त हुआ तो विश्व के देशों को एक और संधि की जरूरत महसूस हुई फिर अंत में चौथी संधि सन 1949 में विश्व के 194 देशों ने मिलकर यह संधि की थी।

कौन युद्ध बंदी माना गया है ( Who is considered a prisoner of war)

वह सैनिक जो युद्ध के दौरान शत्रु देश की सीमा के अंदर पकड़ा गया हो। शत्रु देश पकड़े गए सैनिक के साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नही कर सकता। उसे शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रताड़ित नही किया जा सकता। सैनिक को अपमानित नही किया जा सकता, शत्रु देश युद्ध बंदी के साथ किसी भी तरह का ऐसा व्यवहार नही कर सकता जिससे आम जनता में उसके बारे में जानने की उत्सुकता जागृत हो।

जिनेवा संधि के नियम ( Geneva Treaty Rules)

  1. कोई भी देश युद्ध बंदियों के साथ भेदभाव नही कर सकता।
  2. सैनिक को कानूनी सुविधा प्रदान करनी होगी।
  3. सैनिकों के साथ बरबर्ता पूर्ण व्यवहार नही किया जाएगा।
  4. युद्ध बंदियों को डराया धमकाया नही जा सकता।
  5. युद्ध बंदियों को अपमानित नही किया जा सकता।
  6. युद्ध बंदियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। लेकिन उन पर सीधे फैसला थोपा नही जाएगा।
  7. युद्ध खत्म होने पर सभी युद्धबंदियों को वापस उनके देश को सौंपना होगा।
  8. युद्ध बंदियों को लेकर ऐसे कार्य नही किया जाएगा जिससे आम लोगों में उसे लेकर उत्सुकता जागृत हो।
  9. जिनेवा संधि की वजह से कोई भी शत्रु देश युद्ध बंदी सैनिक से सिर्फ उसका नाम, सैन्य पद, नंबर और वो किस यूनिट से है बस यही पूछ सकता है।
  10. युद्ध बंदियों से सैन्य कारवाही या गुप्त सूचनाओं की जानकारी नही माँगी जा सकती।

क्या युद्ध बंदियों को रिहा किया जा सकता है ( Can prisoners of war be released)

जिनेवा संधि के प्रावधानों के तहत युद्ध बंदियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके साथ ही अगर युद्ध खत्म हो जाता है तो सभी युद्ध बंदियों को रिहा करना पड़ता है। अगर कोई सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गया हो या फिर गंभीर बीमारी का शिकार हो गया हो तो ऐसी स्थिति में शत्रु देश को उसका उपचार करवाना होगा। बंधक के स्वस्थ हो जाने के बाद उसे उसके देश को वापस सौंप दिया जाता है।
इसके साथ ही जिन देशों के बीच युद्ध लड़ा गया है वे देश आपस में एक आम राय कायम कर सकते है। अगर वे चाहे तो एक दूसरे के साथ जिनेवा संधि से अलग एक और संधि कर सकते है। जिससे युद्ध बंदियों के अधिकारों की सुरक्षा हो सके और उनकी जल्द से जल्द रिहाई संभव हो सके।
इसी तरह की संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुई थी। 1971 में पाकिस्तान भारत युद्ध में 80000 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्म समर्पण किया था। जिसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच 1972 में शिमला समझौता हुआ। भारत को सभी पाकिस्तानी सैनिकों को इसके तहत रिहा करना पड़ा। इन्ही संधियों के तहत पाकिस्तान ने भारत के विंग कमांडर अभिनंदन को भारत सरकार को वापस सौंप दिया था।

संधियों का पालन हो रहा है या नही इस पर कौन नज़र रखता है

संधियों का पालन सही तरीके से हो रहा है या नही इसकी जाँच अंतराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति करती है। कारगिल युद्ध के दौरान भी पाकिस्तान ने दो भारतीय सैनिकों को गिरफ्तार किया था। जिसमे से फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को पाकिस्तान ने वापस लौटा दिया था। लेकिन वही स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा की पाकिस्तान की कैद में ही मृत्यु हो गई थी।
जब युद्ध हो रहा हो तो रेड क्रॉस समिति उन देशों का मुआयना करती है जो युद्ध में शामिल है। इस समिति के अधिकारियों को लगभग हर तरह के सैन्य ठिकाने पे जाने का अधिकार है। ताकि कोई भी देश युद्ध बंदियों को छुपा न सके। ये समिति देश में मौजूद किसी भी जेल या कैम्प या भूभाग की जाँच कर सकती है।
अगर कोई भी देश इन संधियों का उलंघन करता है तो उस देश के विरुद्ध विश्व भर के देश जिनेवा संधि के तहत कोई भी उचित कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र होते है।

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