सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ था या नही ?

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आज हम बात करेंगे सम्राट अशोक पर हम लोगों में से ज्यादातर सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन को लेकर कर पूछे जाने पर यही जवाब देंगे कि कलिंग युद्ध की हिंसा को देख कर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई यह पूरा सच है ? आइये जानते है।

1. सवाल : क्या सम्राट अशोक ने “कलिंग युद्ध” के बाद बौद्ध धर्म अपनाया था ?

अशोक के सत्ता में आने से पहले अशोक आधुनिक उज्जैन के यानी पूर्व में अवन्ति के गवर्नर थे। उज्जैन में बतौर गवर्नर रहते हुए अशोक सबसे पहले उज्जैन के बौद्ध भिक्षुओं के सम्पर्क में आये थे। लेकिन उस वक़्त उन्होंने बौद्ध धर्म नही अपनाया।
सम्राट अशोक ने अपने सभी 99 सौतेले भाइयों को मौत के घाट उतार दिया था। यह तो आप जानते ही होंगे, लेकिन उन्होंने अपने एक मात्र सगे भाई “तीस्ता” को नही मारा जो खुद एक बौद्ध भिक्षुक था। सम्राट अशोक को “चांडाल अशोक” भी कहा जाता था। ऐसा लोग उसकी हिंसक नितियों की वजह से उसे कहते थे।

2. सवाल : सम्राट अशोक ने सत्ता में आते ही उसने क्या किया ?

अशोक के राजा बनने से पहले और राजा बनने के बाद उसके दरबार में सबसे ज्यादा अगर किन्ही लोगो का सबसे ज्यादा दख़ल था, तो वो है जैन और आजीवक सम्प्रदाय के लोगों का। सबसे बड़ी दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों ही समाज के लोगों का समर्थन अशोक को नही बल्कि उसके बड़े भाई को था।
वही उसी समय मगध में बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। इसीलिए अशोक को यह मालूम था कि अगर उसे सत्ता में बने रहना है तो उसे लोगो का साथ चाहिए। लेकिन चूँकि जैन और आजीवक समुदाय के लोगो का समर्थन अशोक के बड़े भाई के साथ था। इसलिए अशोक ने बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों का सहारा लिया।
सम्राट अशोक ने खुद को सत्ता में स्थापित करने के लिए बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों की मदद ली। जैसे ही वह सत्ता में पूर्ण रूप स्थापित हुआ, उसने सबसे पहले जैनों के विरुद्ध हिसंक नीति अपनाई। उसने राज्य में घोषणा की, कि एक जैन संत का सर लाने पे एक सोने के सिक्के दिए जायेंगे।
यह पागलपन तब जा कर रुका जब किसी ने सम्राट अशोक के सगे भाई “तीस्ता” जोकि एक बौद्ध भिक्षुक थे उन्हें जैन संत समझ कर उनका सर काट कर सम्राट अशोक को भेज दिया गया। वही दूसरी तरफ कलिंग राज्य में जैनों का प्रभुत्व था।

3. सवाल : जिस सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन अपने भाइयों और अपनी प्रजा को मार कर नही हुआ। क्या उस सम्राट का ह्रदय परिवर्तन एक युद्ध से संभव हो गया।

अगर हम इतिहासकारों की माने और कलिंग के इतिहास को जाने तो हमें पता चलता है कि कलिंग युद्ध के बाद भी सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन वाली बात कही नही कही गई है। अगर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन होता तो कलिंग के इतिहास में इसका उल्लेख जरूर मिलता लेकिन ऐसा हुआ ही नही।
कलिंग के इतिहास में कही भी यह नही मिलता की अशोक को अपने किये पर दुःख या शर्मिंदगी है। यहाँ तक अशोक ने कभी भी कलिंग के लोगो से माफी भी नही माँगी। इसके साथ ही कलिंग की आम जनता ने कभी हार नही मानी। जैसे ही मौर्य साम्राज्य कमजोर हुआ, वैसे ही खारवेल के नेतृत्व में कलिंग ने मगध साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। यहाँ जानने वाली विशेष बात यह है कि खैरवाल खुद जैन था।
सम्राट अशोक की हिंसक गतिविधियों के कारण उसके मरने के बाद लोगो ने उसे भुला दिया। लेकिन जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने फिर से सम्राट अशोक के इतिहास को खोज निकाला।

4. सम्राट अशोक का आम जनता के जीवन में दखलंदाज़ी ?

सम्राट अशोक के शिलालेखों से यह साफ पता चलता है कि वह आम जनता के जीवन में काफी ज्यादा हस्तक्षेप था। उसके शिलालेखों से पता चलता है कि उसकी जनता पर किसी भी तरह का माँस खाने पर प्रतिबंध था। यहाँ तक आप पेड़ों को काट भी नही सकते थे, ऐसा करने पर लोगो सज़ा दी जाती थी। यह कहना गलत नही होगा कि सम्राट अशोक अपनी जनता को हिंसक तरीके से अहिसंक बनाने का प्रयास कर रहा था।

5. क्या सम्राट अशोक ने चालाकी से अपनी छवि को सुधारने का प्रयास किया ?

बहुत से इतिहासकार यह मानते है कि सम्राट अशोक की छवि जब बहुत ज्यादा खराब हुई। तो उसने अपनी हिंसक और क्रूर छवि को सुधारने के लिए अपने राज्य का विस्तार दक्षिण के तरफ करने पर रोक दिया। इसके बाद वह लगातार अपनी छवि को सुधारने के लिए प्रयास करने लगा।
लेकिन उस समय समस्या यह थी कि जो बौद्ध धर्म सम्राट अशोक के समय था। उसमें बहुत सारी बुराईयों का समावेश हो गया था। बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध के जमाने में अहिंसा और शान्ति का प्रतीक था। इसलिए बड़े तादाद में लोगो ने बौद्ध धर्म को अपनाया। इसीलिए ज्यादातर आज के लोगो को यह लगता है कि चूँकि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था इसलिए वह भी शान्तिप्रिय हो गया।
लेकिन ऐसा नही है सम्राट अशोक के समय बौद्ध धर्म वैसा धर्म नही रह गया था जैसा गौतम बुद्ध के जमाने में था। इसके लिए आपको बौद्ध धर्म के इतिहास की जानकारी होनी बहुत ही आवश्यक है। सम्राट अशोक के समय बौद्ध धर्म एक राजनीतिक धर्म बन गया था। इसके साथ ही कालांतर में बौद्ध धर्म के अंदर “बज्रयान” सम्प्रदाय आ गया था जो बेहद हिंसक और अंधविश्वासों से भरा हुआ था।
इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि सम्राट अशोक के काल में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग बलि प्रथा भी कर रहे थे। इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी थी कि गौतम बुद्ध और सम्राट अशोक के समय में 300 साल का अंतर है। इसकी वजह से बौद्ध धर्म में बहुत सी बुराइयाँ आ गयी थी।
अब इसके बाद आप ही यह तय कीजिये कि सम्राट अशोक का सच में ह्रदय परिवर्तन हुआ था। या फिर यह सिर्फ अपनी बिगड़ गई छवि को सुधारने का प्रयास था। या फिर सिर्फ एक राजनीतिक उद्देश्य किया गया कार्य क्योंकि अब हम सभी जानते है, की उस दौर में बौद्ध धर्म का राजनीतिकरण हो चुका था।

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