दुनिया भर के देश अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रखती है। जहाँ आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद, चरमपंथी, साम्प्रदायिक संगठन, खतरा होते है। वही बाहरी दुश्मन से भी देश को हमेशा खतरा बना रहता है।
इस असुरक्षा की भावना को कम करने और देश को सुरक्षित बनाये रखने के लिए दुनिया भर के देश अपने यहाँ एक खुफ़िया जासूस एजेंसी का गठन करती है। जो देश की सुरक्षा के लिए दूसरे देशों संगठनों और व्यक्ति विशेष पर नज़र रखते है और उनकी पूरी ख़बर अपने देश मे मौजूद हेड ऑफिस को देते रहते है।
अगर आप यह जानना चाहते है कि दुनिया की सबसे ताक़तवर खुफ़िया एजेंसी कौन सी है। तो इस सवाल का जवाब देना बेहद मुश्किल है, क्योकि इन खुफ़िया एजेंसी की ताकत का असली अंदाज़ा हमे युद्ध काल में ही पता चलता है।
रॉ (Raw) की स्थापना कैसे हुई ?
जब देश आजाद हुआ तो उस भारत बहुत कमजोर देश था। भारत के पास न तो युद्ध लड़ सकने लायक पूरी तरह से हथियारों से लैस फौज थी और न ही उस वक़्त भारत की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि वह एक ताक़तवर फौज खड़ा कर सके। 1962 में चीन ने कश्मीर पे हमला कर दिया।
उस वक़्त भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय देशों से मदद माँगी। इसी बीच नए बने पाकिस्तान ने भी कश्मीर का मुद्दा लेकर भारत पर 1965 में आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तानी सेना को तो हरा दिया क्योकि उनकी स्थिति भी हमारी ही तरह थी।
लेकिन हम चीन से युद्ध हार गए उसके बाद से ही चीन ने कश्मीर के एक हिस्से पे कब्जा कर रखा है जो आज तक यथास्थिति में है। इसके बाद भारत को यह बात समझ में आ गयी कि देश की सुरक्षा के लिए सिर्फ फौज का ही होना काफी नही है। बल्कि उसे एक ऐसी संस्था की जरूरत है जो बाहरी खतरों के बारे में उसे सूचना दे सके।
इसीलिए भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक खुफ़िया एजेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन यह पास होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी उसके बाद उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी ने इस प्रस्ताव को पारित करवा लिया और फिर सन 1968 में रॉ Research & Analysis Wing की स्थापना हुई।
- Raw की स्थापना से लेकर 1977 तक अपने सेवानिवृत्त होने तक Raw के पहले लीडर रामेश्वर नाथ काओ थे।
- इंडियन खुफ़िया एजेंसी Raw से सेवानिवृत्ति के बाद Rameshwar Nath Kao ने सिर्फ दो ही बार फ़ोटो खिंचवाए है।
- रॉ का शुरुआती बजट सिर्फ 2 करोड़ का था, जो बहुत ही कम था।
- भारत के पहले परमाणु हथियार के गुप्त सफल परीक्षण के पीछे रॉ की मुख्य भूमिका थी।
- रॉ ने 1974 में भारत द्वारा पहले परमाणु परीक्षण की गोपनीयता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- यह पूरा मिशन बेहद गुप्त था क्योकि भारत पर चीन और अमरीका जैसे देशों की खुफिया एजेंसी बहुत ही कड़ी नज़र रखी हुई थी।
- भारत उस वक़्त दुनिया की इन बड़ी एजेंसी की नज़रों में आया जब इंदिरा गाँधी ने भारत को परमाणु सम्पन्न देश बनाने की घोषणा की।
- रॉ ने इस पूरे मिशन को इतने खुफ़िया और अच्छे तरीके से अंजाम दिया कि भारत द्वारा की गई गतिविधि से दोनो ही देश अनजान थे।
- बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को मार कर तख्तापलट की साजिश की जा रही थी तब भारत ने बांग्लादेश को सुनियोजित तख्तापलट की सूचना दे कर शेख हसीना की जान बचाई थी।
- जब रॉ एजेंट ड्यूटी के दौरान मर जाते है तो उन्हें सैन्य सम्मान नही मिलता। अगर वो पकड़े जाते है तो उनका देश उन्हें पहचानने से साफ इनकार कर देता है।
- Raw एजेंट की तनख्वाह एक आईपीएस अधिकारी जितना होता है। यह स्थाई नौकरी नही होती। एक Raw एजेंट की मंथली सैलरी 1.3 लाख तक हो सकती है।
- Raw का बजट बेहद कम होने के बावजूद यह हमारे देश को काफी अच्छा इंटेल सपोर्ट दे रहा है।
- रविंदर कौशिक जो भारत के रॉ के एजेंट थे और पाकिस्तान आर्मी में मेजर के पद तक पहुँच चुके थे पाकिस्तान में उनका नाम Nabi Ahmad Shakir था। उन्हों ने पाकिस्तान की कई गुप्त जानकरिया भारत को दी थी।
- Raw की बेहतरीन प्लानिंग की वजह से ही साल 2015 में श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में महिंदा राजपक्षे हार गए थे। भारत को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योकि महिंदा राजपक्षे भारत के बजाए चीन के ज्यादा करीब थे।
- उम्मीद है दोस्तों की आपको Raw के बारे में यह सभी जानकारी अच्छी लगी होगी और आपको अपने देश और अपने देश के इस खुफ़िया एजेंसी पे नाज़ होगा। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।
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