जवाब :

  1. अगर सभी यात्रियों के लिए प्लेन में पैराशूट की व्यवस्था की जाये तो यह एयरलाइन को बहुत ही ज्यादा महँगा पड़ेगा.
  2. इसके साथ ही सभी यात्रियों के लिए पैराशूट की व्यवस्था करने पर एयरप्लेन में इसके लिए बहुत सारी जगह चाहिए जो की मुमकिन नहीं है.
  3. एक पैराशूट का औसत वजन 7 किलो से लेकर 14 किलो तक हो सकता है. ऐसे में अगर एक एयरप्लेन में 150 यात्री भी हुए तो सिर्फ पैराशूट का वजन ही 1050 किलो से लेकर 2100 किलोग्राम तक हो जायेगा. हम सभी जानते है की एयरप्लेन सिर्फ कुछ निश्चित तय वजन लेकर ही उड़ान भर सकता है.
  4. पुरे एयरप्लेन का वजन उसकी उड़ान पर प्रभाव न डाले इसलिए आपके सामान को किलोग्राम के हिसाब से डिवाइड किया जाता है. अगर पुरे एयरप्लेन का वजन ज्यादा हो जाता है तो आपका सामान दुसरे प्लेन से भेजा जाता है.
  5. इसके साथ ही हर बार उड़ान भरने से पहले पुरे एयरप्लेन की जाँच होती है, ऐसे में अगर हर एक पैराशूट की जाँच की जाये तो इसमें और भी ज्यादा समय लगेगा.
  6. इसके साथ ही एयरप्लेन के हर बार उड़ान भरने से पहले एयर होस्टेज को यात्रिओं को इमरजेंसी में पैराशूट का इस्तेमाल कैसे करना है यह समझाने में भी बहुत ज्यादा समय लगेगा.
  7. इसके साथ एयर होस्टेज के पैराशूट के इस्तेमाल के बारे में बता दिए जाने पर भी यात्री सही से समझ सके यह जरुरी नहीं.
  8. अगर किसी आपातकालीन परिस्थिति में सभी यात्रिओं को अगर पैराशूट से निचे उतारना पड़ा तो ऐसी स्थिति में प्लेन के अन्दर ही भगदड़ मच जाएगी. जिससे प्लेन असंतुलित हो कर समय से पहले ही क्रेश हो सकता है.
  9. यात्री एयरप्लेन 35000 फीट की ऊँचाई पर उड़ते है, ऐसे में आप ही बताइए क्या आप इतनी ऊँचाई से पैराशूट से निचे कूद सकते है. जाहिर है नहीं यह हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है.
  10. स्काई ड्राइविंग करने वाला कोई व्यक्ति जब 15000 फीट की ऊँचाई से जम्प करता है तो उसे ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है. क्योकि इतनी ऊँचाई पर आप आसानी से साँस नहीं ले सकते, अगर सभी यात्री के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई तो यह काफी महँगा होगा.
  11. इसके साथ ही यात्रिओं के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए एयरप्लेन में अतिरिक्त जगहों की जरुरत पड़ेगी जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती.
  12. चूँकि प्लेन हवा में होगा और जिस वक़्त आपातकालीन स्थिति होगी उस वक़्त जरुरी नहीं की प्लेन किसी जमीनी सतह के ऊपर उड़ रहा हो. आप सीधे किसी समुद्र के बीचो बीच भी उतर सकते है जोकि और भी भयानक परिस्थिति उत्पन्न कर देगी.
इन्ही सब कारणों की वजह से यात्री एयरप्लेन में यात्रियों के लिए पैराशूट की व्यवस्था नहीं की जाती. क्योकि यह असुविधाजनक होने के साथ साथ खतरनाक और खर्चीला है. इससे प्लेन की उड़ान पर असर पड़ता है और एयरप्लेन में बार बार उड़ान सम्बंधित असुविधा होने के साथ साथ क्रेश होने के चांसेस भी बढ़ जायेगे.

हाल के कुछ शोधों से पता चला है कि स्कूल जाने वाली उम्र के लगभग 75 प्रतिशत बच्चों को कभी न कभी सिरदर्द का अनुभव होता ही है। उनमें से भी 10 प्रतिशत नियमित और पुरानी स्थिति से पीड़ित होते हैं। बच्चों में सिरदर्द दो प्रकार के हो सकते हैं: एक तो प्राथमिक सिरदर्द विकार, जिसके अंतर्गत पुरानी दैनिक सिरदर्द, माइग्रेन, तनाव से सिरदर्द, क्लस्टर सिरदर्द, पैरॉक्सिमल हेमिक्रानिया, जो कि आंतरिक प्रक्रियाओं, और अन्य ट्राइजेमिनल के कारण होता है ऑटोनोमिक सेफालिज़्म और वही दूसरी तरफ सिरदर्द विकार, जो किसी बीमारी के लक्षण के रूप में उत्पन्न हो सकते है।
दुनिया भर में लगभग 58.4% स्कूल जाने वाले बच्चे प्राथमिक सिरदर्द के विभिन्न रूपों के शिकार होते है। बच्चों में सिरदर्द के सामान्य कारणों में दूसरे बच्चों का दबाव, पढ़ाई का दबाव या खराब प्रदर्शन और अन्य गतिविधियों को कम करना आदि कारण हो सकते है। प्राथमिक सिरदर्द को मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक जाँच और सावधानीपूर्वक अध्ययन द्वारा ठीक किया जा सकता है। वहीं दूसरे तरह के सिरदर्दों को दवाईयों और उपचारों द्वारा हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है। वही बच्चों में सबसे ज्यादा सिरदर्द के कारणों को समझने में दिक्कत होती हैं। माता-पिता को कभी-कभी समस्या की गंभीरता का पता लगाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बच्चे अक्सर अपनी शिकायत को बताने समझने में असमर्थ होते है। सिरदर्द का अनुभव करने वाले बच्चे अक्सर तेज़ गुस्सेल, चिड़चिड़े और हिंसक होते हैं। साथ ही, बच्चे विभिन्न लक्षणों के साथ विभिन्न प्रकार के सिरदर्द से पीड़ित होते हैं।

माइग्रेन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, माइग्रेन सबसे अधिक प्रचलित बीमारियों में से एक है। इसके लक्षण सामान्यतः कुछ यूँ है-
  1. सिर में तेज दर्द जो बच्चों में थकावट और चिड़चिड़पान पैदा कर सकता है।
  2. मतली और उल्टी होती है।
  3. पेट में ऐंठन होती है।
  4. ध्वनि और प्रकाश के प्रति तीव्र संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

तनाव से सिरदर्द

जवान लोगो के मुकाबले ये बच्चों और किशोरों में ये दर्द अधिक आम बात हैं। अक्सर तनाव और थकान के कारण सिर और गर्दन के टिशूज में सामान्य रक्त प्रवाह में रुकावट उत्पन्न होता है, जिससे सिरदर्द होता है। इनके लक्षणों की बात करें, तो 
  1. माथे के दोनों तरफ दर्द होना।
  2. सिर और गर्दन के आसपास की मांसपेशियों में दर्द होना।
  3. बुखार या ब्लड प्रेशर का हाई हो जाना। 

क्लस्टर सिर दर्द

क्लस्टर सिरदर्द एक दिन या एक सप्ताह तक में पांच या उससे ज्यादा बार हो सकता है। यह सिरदर्द हर बार कम से कम 15 मिनट से लेकर 3 घंटे तक हो सकता है।
  1. माथे के एक तरफ दर्दनाक दर्द होना।
  2. नाक में दर्द या खून आ जाना।
  3. आंखों में पानी आना।
  4. स्वभाव में झल्लाहट और बात-बात पर गुस्सा हो जाना।

बच्चों में सिरदर्द के कुछ अन्य मुख्य कारण ये हो सकते है-

  1. मौसमी फ्लू और वायरल इंफेक्शन के कारण 
  2. लगातार साइनस संक्रमण के कारण
  3. तनाव और थकान से के कारण
  4. नींद न आने के कारण
  5. अत्यधिक शारीरिक थकान के कारण
  6. लंबे समय तक पढ़ने के कारण
  7. लंबे समय तक टीवी देखने और वीडियो गेम खेलने के कारण 
  8. आई स्ट्रेन और सिर में चोट लगने के कारण
  9. ट्यूमर के कारण
  10. भावनात्मक तनाव, जैसे पीयर प्रेशर और प्रफोमेंस प्रेशर के कारण
  11. ब्रेन में होने वाले इंफेक्शन जैसे मैनिंजाइटिस और एन्सेफलाइटिस के कारण
  12. नाइट्रेट या एमएसजी से फूड एलर्जी के कारण

बच्चों को सिरदर्द से बचाने के उपाय

बच्चों के सिरदर्द में डॉक्टर की मदद लेना बहुत जरूरी हो जाता है। आज कल ज्यादातर लोग एनाल्जेसिक और पेरासिटामोल का इस्तेमाल करते हैं। यह हानिकारक हो सकता है क्योंकि इन दवाओं के ज्यादा प्रयोग से सिरदर्द कम होने के बजाए और बढ़ सकता है। आपको बच्चों के संतुलित आहार और बाहरी गतिविधियों का खास ख्याल रखना चाहिए। सिरदर्द के कारणों को जानने और उससे बचने के लिए हर बार बच्चों के दर्द पर ध्यान दें। इसके साथ ही खाने-पीने में बिलकुल कोई कमी न करें। बच्चे को स्ट्रेस न दें और उससे हर बात खुल कर करें।

फ्लैट हेड सिंड्रोम बेसिकली तब होता है जब शिशु के जन्म के बाद उसे सिर के बल सुलाया जाता है। जब शिशु 1 माह का होता है और उसे सर के बल सुलाया जाता है। इससे सिर के पीछे एक सपाट स्थान उभकर आता है। अगर बच्चे को करवट लेटाया जाता है तो यह दाएँ या बाएँ तरह उभरता है। यह निर्भर इस बात पर करता है कि आप बच्चे को किस तरफ से सुला रहे है।
फ्लैट हेड सिंड्रोम को पोजीशन plagiocephaly भी कहा जाता है। अपने जन्म के बाद के तीन महीने शिशु पीठ के बल सोते है। इस वक़्त तक बच्चे के सिर की हड्डी पूरी तरह से फ्यूज नही होती है वह मुलायम होती है। इसकी वजह से सिर के एक खास हिस्से पर लगातार दबाव पड़ने पर वह हिस्सा सपाट हो जाता है। यानी कि सिर गोल होने के बजाए यह पीछे या दाएँ बाएँ से थोड़ा चपटा हुआ रहता है।
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फ्लैट हेड सिंड्रोम के लक्षण:

  1. बच्चे का सिर एक तरफ से सपाट होने लगता है।
  2. बच्चे के सिर पर उस हिस्से में कम बाल होते है।
  3. जब शिशु के सिर को नीचे की ओर देखा जाता है, तो चपटा हुआ कान आगे की ओर धंसा हो सकता है।
  4. कई गंभीर मामलों में माथे चपटे से विपरीत दिशा में उभर सकते है। यह असमान दिखता है।
  5. अगर यह Tourisolis का कारण है तो गर्दन जबड़ा और चेहरा भी असमान हो सकता है।

फ्लैट हेड सिंड्रोम के उपाय:

अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को फ्लैट हेड सिंड्रोम हो रहा है या उसके लक्षण दिखाई दे रहे है। तो ऐसे में आपको एक बार डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए। टोर्टिकोलिस कि जाँच करने के लिए डॉक्टर यह देख सकता है कि बच्चा सिर और गर्दन को कैसे हिलाता है। वैसे आम तौर पर किसी ख़ास तरह की टेस्ट की जरूरत नही पड़ती।

बच्चे को फ्लैट हेड सिंड्रोम से बचाने के उपाय:

पेट के बल लेटाना:

जब बच्चा एक माह का हो जाये तो आप उसे पीठ के बल सुलाने के बजाए। आप उसे पेट के बल लिटाये जब बच्चा जाग रहा हो या दिन का वक़्त हो तो बच्चे को पीठ के बल न लेटा कर उसे पेट के बल ही लिटाये। लेकिन साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा ज्यादा देर तक पेट के बल न लेटे। बीच बीच मे आप उसे अपनी गोद में उठा लें। बच्चे का सिर नाजुक होता है इसलिए बच्चे को जब भी उठाए। उससे पहले बच्चे के सिर के पीछे से उसके सिर को सहारा दे फिर उसे उठाये।

पालना में अलग अलग स्थिति में सुलाये:

विचार करें कि आप अपने बच्चे को पालना में कैसे लेटाते हैं। अधिकांश दाएं हाथ के माता-पिता शिशुओं को अपनी बाईं बाहों में पालते हैं और उन्हें उनके बाएं सिर के साथ लेटते हैं। इस स्थिति में, शिशु को कमरे में देखने के लिए दाईं ओर मुड़ना चाहिए। पालना में अपने बच्चे को सिर के उस तरफ सक्रिय सक्रियता को प्रोत्साहित करने के लिए रखें जो चपटा न हो।

बच्चे को गोद में लें:

आज कल की महिलाएं अपनी जीवन में बहुत व्यस्त होती है। वही पुरुष भी ज्यादातर कामो में ही व्यस्त होता है। इसलिए कई माये शिशु को दूध पिलाने के बाद कई घंटों तक सोने देती है। सोने देना तो अच्छी बात है लेकिन एक ही स्थिति में शिशु का घंटो सोना ठीक नही। इसलिए बीच बीच मे अपने शिशु के सोने की स्थिति को बदले ताकि उसके सिर के किसी भी खास हिस्से पर ज्यादा देर तक दबाव न पड़े।

पीरियड के दौरान जिस तकलीफ से महिलाये गुजरती है। उसे सिर्फ एक महिला ही समझ सकती है यह समय महिलाओं के लिए दर्द भरा होता है। बहुत सी महिलाये ऐसी है जिनका पीरियड आसानी से गुजर जाता है। लेकिन सब इतनी खुशकिस्मत नही है ज्यादातर महिलाओं को पीरियड की असहनीय पीड़ा सहनी ही पड़ती है। पीरियड के इस तकलीफ से बचने के लिए बहुत सी महिलाये दवाई खाती है तो कुछ घरेलू नुस्खे आजमाती है। आज हम आपको ऐसे 5 फ़ूड के बारे में बताने जा रहे है। जिसे आप अपने डाइट में शामिल करके पीरियड के समय को आसानी से पास आउट कर सकती है।

1. आयरन

पीरियड के दौरान महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। जिससे कमजोरी के साथ साथ आपके मूड में भी बदलाव होता है। हेवी पीरियड के दौरान आयरन की कमी से महिलाओं को एनीमिया हो सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने शरीर में आयरन की कमी को दूर करें। इसके लिए आपको ऐसी चीजें खानी चाहिए जिसमे भरपूर आयरन तत्व मौजूद हो। जैसे कि – बिन्स, डार्क चॉकलेट, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, सूरजमुखी के बीज इसके साथ ही टोफू जैसे आयरन से भरपूर खाने की चीजों को आप अपनी डाइट में जरूर शामिल करें।
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2. मैग्नीशियम

मैग्नीशियम हमारे शरीर में चिंता, नींद की कमी, सिर दर्द जैसे समस्याओं को कम करने में मदद करता है। इसके साथ ही यह पीरियड के दौरान ऐंठन को भी कम करता है। शायद यही वजह है कि ज्यादातर महिलाये पीरियड के दौरान चॉकलेट बेहद पसंद करती है। क्योंकि चॉकलेट में भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम भी होता है। चॉकलेट के साथ साथ आप अपनी डाइट में काजू, पालक, बादाम, सोयाबीन, एवोकेडो, बिन्स और केले को भी शामिल कर सकती है। इन सभी में मैग्नीशियम मौजूद होता है।

3. फाइबर

पेट फुला फुला रहना भी मासिक धर्म के दौरान बहुत सी महिलाओं में यह लक्षण दिखाई देते है। इससे आप असहज महसूस कर सकती है और आपकी सेहत बिगड़ सकती है। ऐसी स्थिति न आये इसलिए आपको अपने डाइट में ढेर सारा फाइबर युक्त भोजन करने की आवश्यकता है। इसकी वजह से आपकी आंते सही तरीके से काम करती रहेगी। पीरियड के दौरान फाइबर युक्त चिंजो को अपने भोजन में शामिल कीजिए। जैसे – चिया के बीज, शकरकंद, सेब और बिन्स।

4. विटामिन बी

पीरियड के दौरान महिलाओं को असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। मासिक धर्म में जब आपको ब्लीडिंग हो तो आप अपने भोजन में अंडे, सीफूड, नट और बीज को शामिल करें। इनमे भरपूर विटामिन बी होता है जो मासिक धर्म के लगभग सभी लक्षणों जैसे मांसपेशियों में ऐंठन थकान को कम कर देता है।

5. कैल्शियम

कैल्शियम मासिक धर्म के दर्द, पेट फूलने और शरीर में पानी को रोक कर रखने की शक्ति में कमी लाता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप पीरियड के दौरान कैल्शियम की मात्रा बढ़ाये। इसके लिए आप अपनी डाइट में दूध, दही, बादाम, ब्रोकली और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें। ये सभी आपकी हड्डियों को मजबूत बनाने में भी मदद करेंगी।

टेस्टोस्टेरोन, पुरुष में पाया जाने वाला एक ऐसा हार्मोन है, जो पुरुषों के अण्‍डकोष में विकसित होता है। इस हार्मोन का संबंध पुरुषों की प्रजनन क्षमता, यौन कार्य, मांसपेशियों के निर्माण और चेहरे व बालों से जुड़ा होता है। जिन पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन लेवल कम होता है उनकी सेक्स लाइफ बहुत अच्छी नही होती। टेस्टोस्टेरोन कम होने के कारण आप मैदान में ज्यादा देर तक टिक नही सकते।
अगर आपकी सेक्स लाइफ बहुत असंतुष्टि से भरी हुई है तो आप को अपना टेस्टोस्टेरोन लेवल जरूर चेक करवाना चाहिए। वैसे तो टेस्टोस्टेरोन महिलाओं में भी पाया जाता है। लेकिन टेस्टोस्टेरोन महिलाओं के मुक़ाबके पुरुषों में अधिक मात्रा में पाया जाता है। टेस्टोस्टेरोन एक पुरुष हार्मोन है यह पुरुषों की सेक्स क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ उनके हेल्थ और शारीरिक विकास के लिए बहुत जरूरी होता है।
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अगर किसी पुरूष में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स की कमी होती है। तो उसमें मोटापा बढ़ने लगता है कुछ पुरुषों में वजन कम होने की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है। टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के शारिरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत ही जरूरी होता है। हम आपको कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में बताने वाले है जिनके सेवन से आप अपने शरीर में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बनाये रख सकते है।

टेस्टोस्टेरोन लेवल बढ़ाने वाले कुछ खाद्य पदार्थ

1. कस्तूरी

जिंक ऐसा पदार्थ है जो हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। मगर यह पुरुषों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। कस्तूरी में जिंक अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जिंक पुरुषों में स्वस्थ शुक्राणु और प्रजनन प्रणाली के लिए बहुत ही जरूरी है। शरीर में जिंक की कमी होने के कारण पुरुषों में hypogonadism का खतरा बढ़ जाता है। जिसकी वजह से शरीर पर्याप्त मात्रा में टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन नही कर पाता। इसलिए पुरुषों को जिंक को अपनी डाइट में जरूर शामिल करना चाहिए।

2. प्याज

हाल ही में एक ताज़ा अध्ययन में पाया गया है कि अगर आप 4 हफ़्तों तक रोजाना प्याज का रस पीते है। तो शरीर में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढ़ाने में बहुत ही मदद करता है। प्याज हम में से ज्यादातर पुरुष खाते ही है सलाद के तौर पर, अगर आप नही खाते तो खाना शुरू कर दीजिए। प्याज हमारे यौन स्वास्थ्य और स्वस्थ यौन संबंधों के लिए बहुत ही जरूरी पोषक तत्वों से भरा पड़ा है।

3. हरी पत्तेदार सब्जियाँ

टेस्टोस्टेरोन लेवल को सही करने के लिए पुरुषों को हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। क्योंकि हरी पत्तेदार सब्जियों में मैग्नीशियम अच्छी खासी मात्रा में पाया जाता है। मैग्नीशियम हमारे शरीर में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढ़ाने के लिए एक बहुत ही आवश्यक तत्व है। पालक जैसी पत्तेदार सब्जियों में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढ़ाने की कमाल की क्षमता होती है। आप 4 हफ़्तों तक मैग्नीशियम से भरपूर सब्जियों का सेवन करें। आपको फायदा अवश्य होगा क्योंकि इनमें मैग्नीशियम के साथ साथ लौह तत्व भी पाया जाता है।

4. अदरक

अदरक न सिर्फ हमारी चाय का स्वाद बढ़ाने के आती है। बल्कि यह पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाने में भी कारगर है। हम सभी जानते है की भारतीय संस्कृति में अदरक का प्रयोग प्राचीन काल से ही औषधीय प्रयोजन में किया जाता रहा है। हाल ही के एक शोध में भी यह बात साफ हुई है कि अगर आप 3 महीनों तक। अदरक का रस पिये तो यह आपके शरीर में टेस्टोस्टेरोन का लेवल 17.5 प्रतिशत तक बढ़ा देता है। इस शोध में 75 अलग अलग पुरुषों को शामिल किया गया था जो अपनी सेक्स लाइफ में खुश नही थे। क्योंकि उनका पार्टनर उनकी परफॉर्मेंस से खुश नही थी। लेकिन अदरक के रस का सेवन करने से उनकी सेक्स लाइफ पहले से बेहतर हो गई।

5. अनार

2012 में किये गए एक शोध में यह बात साबित हुई थी कि अनार न सिर्फ पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढ़ाता है। बल्कि यह महिलाओं में भी टेस्टोस्टेरोन लेवल को बढ़ा कर उसे संतुलित रखता है। इस शोध में 60 लोगो ने 14 दिनों तक शुद्ध अनार का रस पिया। इस रिसर्च के दौरान उन सभी 60 लोगो की दिन भर में 3 बार टेस्टोस्टेरोन लेवल की जाँच की गई। जब यह अध्ययन पूरा हुआ तो सभी प्रतिभागियों में टेस्टोस्टेरोन लेवल में 24% कई बढ़ोतरी दर्ज की गई, जोकि क़माल की उपलब्धि है। इसके साथ ही अनार में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हमारे दिल के लिए बहुत ही फायदेमंद है। इनके साथ ही यह तनाव को भी नियंत्रित करता है।

हम लोगो में से ज्यादातर लोग अपने मसूड़ो पर ध्यान नही देते। इसकी वजह से हमे पता ही नही चलता कि कब हमारे अंदर एक बीमारी जन्म ले लेती है। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ, मैं सिगरेट बहुत पिता था। जिसकी वजह से मेरे होंठ काले पड़ गए थे। मेरे मसूड़े भी धीरे धीरे काले होने लगे थे। एक दिन मेरे दोस्त ने मेरे मसूड़ो पर ध्यान दिया और उसने कहा कि तुम बीमार हो तुम्हें फौरन डॉक्टर से मिलने की जरूरत है। पहले तो मुझे समझ नही आया लेकिन जब उसने पूरी बात विस्तार से बताई तो मुझे भी यकीन हुआ। तो आइए जानते है कि वे कौन से कारण है जिनकी वजह से हमारे मसूड़े काले हो जाते है।

1. मेलानिन का ज्यादा जमा हो जाना

जिन लोगों के त्वचा का रंग काला होता है। उन लोगो मे मेलानिन ज्यादा जमा होने लगता है। इसकी वजह से आपके मसूड़े भी काले पड़ जाते है। मेलानिन एक तरह का तत्व है जिसे हमारा शरीर प्राकृतिक तौर पर बनाता है। मेलानिन की वजह से आपके त्वचा का रंग गहरा होने लगता है। इसलिए अक्सर यह देखा गया है कि जिन लोगों की त्वचा काली है। उनके दाँतो के मसूड़े ग़ुलाबी होने के बजाए हल्के काले रंग के होते है। ऐसे लोगों को घबराने की जरूरत नही है। क्योंकि यह उनमे प्राकृतिक तौर पर होता है। लेकिन अगर आप के मसूड़ों में कुछ कुछ जगहों पर ही सिर्फ काले रंग के धब्बे हो तो आपको फौरन डॉक्टर से मिलने की जरूरत है। क्योंकि तब यह कोई सामान्य बात नही होती है।

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2. दवाओं के प्रयोग से

अक्सर यह पाया गया है कि कुछ लोगो को दवाओं के प्रयोग से साइड इफेक्ट होते है। जिसकी वजह से उनके मसूड़े काले पड़ जाते है। ये कुछ ख़ास तरह की दवाएँ होती है। जैसे कि नींद की दवाई या फिर एन्टी डिप्रेशन की दवाई या फिर मलेरिया या एन्टी बायोटिक मेडिसिन की वजह से भी आपके मसूड़े काले पड़ने लगते है। अगर आप इनमे से किसी भी तरह की दवा का उपयोग कर रहे है। और आपके मसूड़े अगर काले पड़ रहे है तो आप अपने डॉक्टर को इसके बारे में जरूर बताये।

3. सिगरेट पीने की वजह से

दोस्तो हर रोज टेलीविजन पर धूम्रपान से जुड़े प्रचार आप देखते ही होंगे। धूम्रपान से जहाँ कैंसर फेफड़े की बीमारी साँस की बीमारी हार्ट अटैक और स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ जाता है। वही धूम्रपान करने से आपके मसूड़े भी काले पड़ सकते है। अगर आप बहुत ज्यादा सिगरेट या बीड़ी पीते है तो आपको पता चल ही गया होगा कि आपके होंठ काले पड़ रहे है। अधिक धूम्रपान से आपके मसूड़े काले पड़ जाते है। कुछ लोगों में पूरा मसूड़ा काले नही पड़ते बल्कि कुछ काले धब्बे पड़ते है। यह काले धब्बे मुँह का कैंसर होने के शुरुआती लक्षण भी हो सकते है। अगर आप के मसूड़ो में इस तरह के काले धब्बे है तो आप फौरन डॉक्टर से मिलिए।

4. जिंजिवाइटिस के कारण

जिंजिवाइटिस एक तरह से इंफेक्शन होता है जो मसूड़ो की एक ख़ास बीमारी होती है। जिसे अल्सरेटिव जिंजिवाइटिस कहा जाता है। इस इंफेक्शन के कारण आपके मसूड़ो में दर्द के साथ साथ बुख़ार और साँसों की बदबू की समस्या भी हो सकती है। इंफेक्शन की वजह से मसूड़ो की कोशिका मरने लगती है। जिसकी वजह से हमारे मसूड़े काले पड़ने लगते है। अगर आप मे यह लक्षण दिख रहे है तो आप को फौरन डॉक्टर से मिलकर इसका पूरा इलाज करवाना चाहिए। अगर ऐसा नही होता तो आपके मसूड़े हमेशा के लिए काले हो जायेंगे।